मेरी पहली कविता ( संस्मरण पर आधारित )

नमस्कार दोस्तों ,

आज मैं पुनः आपके समक्ष अपने विचारो की कुछ पोटलियाँ लेकर आया हूँ उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी
हम अक्सर काफी जगहों में जाते हैं , और वहां के भिन्न-भिन्न अनुभव साथ लाते हैं , कुछ यादें अच्छी होती है कुछ बुरी, कुछ प्रेरणादायी और कुछ अनोखी... पिछले रोज मैं अपने एक रिस्तेदार के यहाँ शादी के अवसर पर गया था वहाँ उस परिवार को करीब से अनुभाव करने का मौका प्राप्त हुआ और पता चला की शादी एक बड़ी जिम्मेदारी होती  है हम सब के लिए ...

वहाँ के कुछ अनुभव मेरे लिए एक संस्मरण मात्र हो गए, मैं अपने उस संस्मरण से कुछ पल जो खास थे उन्हें छन्दों के माध्यम से लिखने की कोशिश की हैं ये मेरी पहली कविता हैं ......
कहते हैं आप जब आप कुछ नया शुरू करते हैं तो उसके भूल चूक की गुंजाईश ज्यादा होती है उसी उद्देश्य से अपने भूल चुक की माफ़ी आपसे चाहता हूँ....

मेरी पहली कविता (संस्मरण पर आधारित)

चल पड़ा हूँ  आज उस गली मे जहाँ आज किसी की शादी है !!!
जब भी हम किसी शादी में जाते है वहाँ आकर्षण का केंद्र वहाँ की साज-सज्जा होती हैं....उन्ही चम धमक पर चार लाइन-

चल पड़ा हूँ आज उस गली मे जहाँ आज किसी की शादी है
चमक पड़ी है रोशन गालियां, सड़को मे आज उजियारा हैं
लगे पड़े जो तोरण पताके, लड़ियों को जो जगमगाहट है
सजे पड़े है मंडप आँगनफूलों की जो बाहारी आयी है
छाय जा रहे जो तिरपाल यहाँ पर, कनाथो की भरमारी है

चल पड़ा हूँ आज उस गली मैं जहाँ आज किसी की शादी है

कही न कही शादी के घर का माहौल एक अलग ही मनमोहक स्मृति दे जाता है- उस पर चंद पंक्तियाँ

बज रहे है जो मधुर संगीत और महोल मे एक कोहलाहट हैं
आ रही जो मीठी खुसबु, पकवानो की भरमारी है
है पड़ा लोगों का हजूम बहुत, बच्चों की खिलखिलाहट है

चल पड़ा हूँ आज उस गली मे जहाँ आज किसी की शादी है

शादी के घर का दूसरा प्रमुख आकर्षण वाद्य-यंत्रों होते हैं-

बज पड़े है ढोल नंगाड़े, खुशियों की जो लहर आयी है...
नाच पड़े है सब भूल भाल के, सबने आज कमर हिलायी है
बन्नो हमारी आज ब्याह रचा रही , ख़ुशी की बस इत्ती सी घड़ी आयी है

चल पड़ा हूँ आज उस गली में जहाँ आज किसी की शादी है

शादी के घर पर काम करने की एक बड़ी जिम्मेदारी होती है उन पर दो पंक्तियाँ-

शादी का वो घर अनोखा, आलस सब की भगायी है
भीड़ भाड़ के आज सब बैठे, काम करने की लाचारी है...

चल पड़ा हूँ आज उस गली में जहाँ आज किसी की शादी है

शादी की सबसे अहम बात वहाँ के व्यंजनों से होती हैं....भले शादी कैसे भी पर वहाँ के पकवानों को अहम होना चाहिए, इससे ही उस परिवार को मापा जाता हैं की उसने कितनी तयारियाँ की हैं-

खास रहा वो शादी का लड्डू, जिसे सबने स्वाद लेकर खायी है
बन रहे  वो मीठे गुलाबजामुन बहुत , सब के जो मुह में जिसने पानी लायी हैं....
खास रही वो पूरी पकोड़ी , पापड़ सलाद ने भी खूब ललचाया है...
खूब बने आज पकवान बहुत और , पकवानों की जो आज भरमारी छायी है

चल पड़ा हूँ आज उस गली में जहाँ आज किसी की शादी है

और अब चंद पंक्तियाँ उस सौभाग्यकांक्षिणी कन्या के लिए, जिसने जन्म से लेकर अभी तक उस घर में अपना बचपन बिताया हैं उसके कल और आज में एक तुलनात्मक संबंध-

कल तक थी जो घर की सयानी , आज बन्ने जा रही है किसी की जीवन- संगिनी हैं
कल तक रंगते थे हाथ बहुत और आज हाथो मे मेहंदी की छाप हैं,
लगी पड़ी थी जो कल तक लाली पाउडर मे आज सनी है हल्दी की थाप मे
खेला करती ये बहुत गुड्डे-गुड़ियों से, आज देखो कैसे बन गयी एक गुड़िया है

चल पड़ा हूँ आज उस गली मे जहा आज किसी की शादी है

और चलते-चलते अब हम उस विवाह के अंतिम छोर पर पहुच गये जहाँ एक सामान्य व्यक्ति भी अपने भाव रोक नही पता है...
जी हाँ बिदाई, बिदाई के इस मार्मिक दृश्य को वर्णन करते हुए-

आज आंखे नम है सबकी, लेकिन मन मे आशीर्वादों की सुगबुगाहट है
कल तक थी वो पिता की लाडली आज बाबुल की प्यारी है
डोली चली है आज उसकी चल पड़ी वो भी कुछ नए सपने बुनने

नम हुई आज माँ की आँखे, फफक कर रो पड़ी है वो भी
दुनिया की रीत है बही, तुझे भी आज मान नी है

खुश रहना , और खुश रखना....यही हम सबकी आस है

और चंद पंक्तियाँ मेरे अंतर्मन से आशीर्वाद की भांति उस नव-विवाहित कन्या के लिए -

चल पड़ी हो आज तुम भी उस गली में, जहाँ नए रिश्तों की सौगात हैं
नए परिवार, नए रिश्ते सब कुछ नया होगा तुम्हारे लिये, भयभीत न होना
तुम हो ,तुम ही से परिवार है, जोड़े रखना इन परिवारों को
सबको तुम्ही से बस ये आस है....

आज कुछ खास है, आज कुछ खास हैं

चल पड़ा हूँ आज उस गली में जहाँ किसी की शादी है


और अंत में इस पुरे काव्य को विराम देते हुए

बहुत होगयी भागम-भाग , अब तो घर जाने की पारी हैं
अब लौट चला हूँ मैं भी अब उस गली में , जहाँ मेरा ठिकाना हैं

चल पड़ा हूँ आज उस गली में जहाँ आज किसी की शादी है !!

चल पड़ा हूँ आज उस गली में जहाँ आज किसी की शादी है !!


प्रेम नारायण साहू


उम्मीद करता हूँ की ये संस्मरण भरी कविता आपके हृदय स्पर्श को जरूर अलंकृत की होगी....
अगर थोड़ी भी ये कविता पसंद आयी हो तो शेयर करना न भूले !

धन्यवाद !

ज़िंदगी Unplugged डायरी के पन्नो से

मैं प्रेम , मेरी कलम से एक कविता संस्मरण पर आधारित ।






Comments

  1. Very nice poetry which touched my heart... 😍
    Keep ut up sir.. 😋😊

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  2. Heart touch poetry bhai prem very nice..... 👌👌✌

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 09 सितम्बर 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!
    

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद आपका , की आपने मेरी कविता को इस लायक समझा ।
      आपका बहुत बहुत धन्यवाद !

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  4. जी आदरणीय बड़ी ही रोधक है आपकी ये संस्मरणात्मक कविता ----------- जीवन के उकेरे गये सभी रंग भावुक कर देने वाले हैं | आपकी रचनात्मक प्रतिभा को नमन करते हुए आपको हार्दिक शुभकामना प्रेषित करती हूँ |

    ReplyDelete
  5. कृपया रोधक नहीं रोचक पढ़िए ----- गलती के लिए खेद है |

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  6. जी आदरणीय बड़ी ही रोधक है आपकी ये संस्मरणात्मक कविता ----------- जीवन के उकेरे गये सभी रंग भावुक कर देने वाले हैं | आपकी रचनात्मक प्रतिभा को नमन करते हुए आपको हार्दिक शुभकामना प्रेषित करती हूँ |

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    1. आदरणीय रेणु जी आपका बहुत-बहुत आभार, आपके उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद !
      अपने मेरे ब्लॉग के लिए समय निकाला इसके लिए भी धन्यवाद ! ! !

      Delete
  7. वाह ! कविता के रूप में बयान किए गए इस संस्मरण ने पूरी शादी का चित्र खींच दिया आँखों के सामने । संस्मरण बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिए कि पढ़ने वाले के सामने सब कुछ साकार हो उठे !

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    1. आदरणीय मीना जी आपका बहुत-बहुत आभार, आपके उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद !
      अपने मेरे ब्लॉग के लिए समय निकाला इसके लिए भी धन्यवाद ! ! !

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